ज्ञान मनुष्य का तीसरा नेत्र है

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शिक्षा , व्यक्ति , समाज और राष्ट्र की प्रगति के साथ-साथ सभ्यता एवं संस्कृति के विकास के लिए भी आवशयक है । किसी ने सही कहा है “ज्ञान मनुष्य का तीसरा नेत्र है , जो उसे समस्त तत्वों के मूल को जानने में सहायता करता है तथा सही कार्य करने की विधि भी बताता है” | प्राचीन भारतीय शिक्षा पद्धति में “गुरुकुल” से लेकर “नालंदा”, “विक्रशिला” तथा “तक्षशिला” जैसे बड़े बड़े शिक्षा केंद्रों ने लिया है, लेकिन शिक्षा का मूल्य उद्देश्य ज्ञान की गहराई में तरना ही रहा है|

मैकाले की शिक्षा की नीति हो या कालिदास या फिर मुंशी प्रेमचंद्र जी सबने शिक्षा को अहमियत दी है| १ अप्रैल २०१० से प्रभावी हुए ६ से १४ साल की आयु के बच्चौ को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा का कानून इस दिशा में एक बहुत ही अच्छी पहल है । लेकिन असलियत ये है की सरकारी स्कूल तो होगा साहेब लेकिन वंहा पे इस बात की कोई गॅरेंटी नहीं की वंहा पे शिक्षक हो या कोई भी मूल भूत सुविधा उपलब्ध हो । इसलिए इन सरकारी स्कूल से बच्चों का पलायन हो रहा , कुछ तो स्कूल सिर्फ मिड – डे – मील के लिए जाते है तो कुछ स्कूल ही नहीं जाते । और तो और दुःख की बात ये है की इन सरकारी स्कूलों में उन्ही के बच्चे पड़ते है जिनकी हैसियत नहीं होती है, प्राइवेट स्कूल की फीस भरने की !

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“बराबरी और विकास लेन की जिस भावना के तहत शिक्षा को मौलिक अधिकार बनाया गया है , उसे पाने के लिए गुणवत्ता के फर्क को भी मिटाना होगा “, सरकारी स्कूलों में भी सुविधाएं अनिवार्य करनी ही होगी और प्राइवेट स्कूलों के नाम पे चल रहे शिक्षा के वयवसायी रूप को रोकना होगा डिग्री ले के पढ़ लिख तो कोई भी लगा , लेकिन एक शिक्षित इंसान नहीं बन पाएगा , जो अपने आप की , परिवार की, समाज की , देश की तरक्की, विकास के बारे में सोच सके ।

“PEHCHAAN ‘The Street School’ एक ऐसी ही पहल है जो जरुरत मंद बच्चों को पढ्ने-लिखने के के साथ-साथ सभ्यता एवं संस्कृति की भी सीख देती है!

By: Avinash Kumar

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